Tuesday 3 October 2017

कनौज में राठौड़ का इतिहास

हरीश चन्द्र - जय चन्द्र - विजय चन्द्र - गोविन्द चन्द्र - मदनपाल - चन्द्र देव – जयचंद्र

1170 - 94 ई॰ 

कन्नौज के राज्य की देख-रेख का उत्तराधिकारी उसके पिता विजय चंद्र ने अपने जीवन-काल में ही बना दिया था।
विजय चंद्र की मृत्यु के बाद वह कन्नौज का विधिवत राजा हुआ। वह बड़ा वीर, प्रतापी और विद्धानों का आश्रयदाता था। उसने अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से कन्नौज राज्य का काफ़ी विस्तार किया था। जयचंद्र दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री से उत्पन्न हुआ था। जयचंद्र चंदेल राजा मदनवर्मदेव को पराजित किया था। जयचंद्र के समय में गाहडवाल साम्राज्य बहुत विस्तृत हो गया। इब्न असीर नाम लेखक ने तो उसके राज्य का विस्तार चीन साम्राज्य की सीमा से लेकर मालवा तक लिखा है। अंत में वह मुसलमान आक्रमणकारी मुहम्मद शहाबुदीन गौरी से पराजित होकर चँद॔वार की लड़ाई (इटावा के पास) में (वि.सं.1251) मारा गये थे उनकी मृत्यु के तुरंत बाद कन्नौज तुर्कों के कब्जे में चला गया। यह कन्नौज केराठौङ वंश के अंतिम महत्वपूर्ण शासक थे।
सहदेव - ब्रहद्रथ - वसु - जरासंध – यल्ज्क्
सहदेव का वध द्रोणाचार्य के हाथों हुआ था।
जरासंध के पिता थे मगध नरेश महाराज यल्ज्क्,भगवान श्री कृष्ण की सहायता से पाण्डव पुत्र भीम ने जरासंध को द्वन्द युद्ध में मार दिया
मथुरा शासक कंस ने अपनी बहन की शादी जरासंध से की तथा ब्रहद्रथ वंश की ।
राठौङ वंश का इतिहास - संपूर्ण राजपूतोँ का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है।

कनौज और राठौड़ वंश

राठौङ 5वीँ शताब्दी मेँ कनौज आये इससे पहले इनका निवास अयोध्या था । राठौङ वंश का निकास भगवान राम के पुत्र कुश से माना जाता है। जिस समय भारत मेँ बाहरी मुस्लिम आक्रमणकारी आये उस समय भारत मेँ राजपूतों के छह वंश और छतीस कुल का शासन चल रहा था जिस मेँ चार प्रमुख बङे हिन्दू राजपूत राजकुल थे-
01 - दिल्ली तूअरोँ और चौहान का राज 
02 - कनौज राठौड़ो का राज
03 - मेवाड़ गुहिलों का राज
04 - अनहिलवाङ चावङा व सोलंकियो का।
कोह्चंद ने सावण बदी पंचमी विक्रम संवत 875 मेँ कनौज कि नीवं रखी (कनौज बसायी) कोह्चंद के बाद के शासक


01 - कोह्चंद
02 - मियाचंद
03 - सोभागचंद प्रथम
04 - दीपचंद
05 - सरेचंद
06 - सामचंद द्वितीय
07 - सोभागचंद
08 - अभेचंद
09 - इन्द्र बाबूजी
10 - करणजी
11 - तुगनाथजी
12 – भारिध जी
13 - दानेसुरा
14 - पुंज जी
15 - धनराज
16 - रत्न ध्वज (कमध्ज)

बिना शीश गजहते रत्ना ध्वज सशेर।
ताते बाजे कमधजपति इत्यादी राठौड़।। 

कन्नौज राज के समय राजा रत्नाध्वज ने शिश कटने के बाद बिना शिश एक हजार हाथीयो पर बैठे दुश्मनो को मार गिराया तब से राठौङ कमध्वज्या कहलाये.

सबसे कठोर रणनिती (युध का प्रचंड कौशल) राठौङो की है इसलिए रणबंका राठौङ कहलाये...
रज + पुत = रजपुत
रज = धरती माँ की कोख से पैदा होकर उसकी रज (कोख) की रक्षा करने वाला
पुत = बेटा

माँ, मातृ भौम धरती माँ की रक्षार्थ क्षत्रिय रजपुत कहलाये...

16 - किशनदेव
17 - मधुदुपीव
18 - कलवन
19 - रछजी
20 - सदतरछ्जी
21 - अभयचन्द
22 - जयचन्द
23 - प्रतापभाण जी
24 - माणकचन्द जी
25 - अगरचंद जी (इन्होने आगरा बसाया)
26 - बिडदाई सेणी

पुंज जी से राठौड़ों की पुराने समय में साढ़े बारह (12.5) साखा बताई जाती है -

राजा श्री पुंज जी के तेरह पुत्र हुये थे। जिनसे तेरह शाखायेँ चली जो इसप्रकार है

01 -- दानेसरा - धर्मविम्भ का, (मारवाड़)
02 - अभयपुरा- भनूद का, अभय पुरा नगर को बसाया जिसके कारण यह नाम पङा।
03 - कपोलिया (कुपालच्या) - वीर चन्द्र का दक्षिण गया।
04 - कोराह (कुरा) - अमर विजय के, कोराह नगर बसाया जिसके कारण यह नाम पङा।
05 - जलखेङिया (जालखडिया) - सुजान वनोद का,
06 - बोगीलन (बुगालिया) - पद्म का, बोगीलाना नगर पर विजय करने के कारण यह नाम पङा।
07 - एहर (अहरवा या अरवा) - एहर का,
08 - पारक (परेकुश) - बरदेव का पारक नगर बसाने से यह नाम पङा
09 - चँदेल- उग्र प्रभ का (चंदरपाल जी से)
10 - बीर (बिरपुरा) - मुक्तमणि का
11 - भूरिऔ (जवत्रराय) - भरुत का,
12 - खेरोदिया (खरुदा) - अल्लू कुल का, खैरुदा नगर बसाया जिसके कारण यह नाम पङा।
13 - तारापुरा (दहिया) - चाँद का, तारापुर, तेहर और बघलाना तीन नगर बसाये। पहला नगर तारापुर बसाया सो यह               नाम पङा। (यह राज्य 1914 मेँ नष्ट हो गया) (ये आधी साखा मानी जाती है)


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