Thursday 30 November 2017

उदावत राठोड़ो की उत्पत्ति

राव ऊदाजी राव सूजाजी के तीसरे पुत्र थे। तथा इनकी माता का नाम रानी  मांगलयाणी जी था. राव ऊदाजी का जन्म वि.स. 1519 को मिन्ग्सर  बद्दी10 गुरूवार को  हुआ था। इनके वंशावली उदावत राठौड़ कहलाये । राव ऊदाजी को जोधपुर से बंट में जैतारण का राज दिया गया। पहले भाई बंट में दिया गया. इलाका बलपूर्वक जीत कर ही लेना होता था। उस समय जैतारण में सिंधल खींवा का राज था। सिंधलों से जोधपुर राजघराने में अनबन रही । लेकिन सिंधल खींवा राव ऊदाजी के मासाजी थे। इसलिए ऊदाजी जैतारण का राज बलपूर्वक लेना नहीं चाहते थे। सिंधल खींवा को इस बात की जानकारी थी जब ऊदाजी जैतारण गए तो सिंधल खींवा ने ऊदाजी का स्वागत किया और जैतारण से लौटते वक्त ऊदाजी को लौटोती गांव की जग्गीर दे दी । राव ऊदाजी ने लौटोती में अपने पिता के नाम से सूजासागर नाम का एक तालाब भी बनवाया। लौटोती के पास गांव निम्बोल में एक योगीराज रिध-रावलजी रहते थे। राव ऊदाजी योगीराज के पास गये तथा कई दिन उनकी सेवा में रहे। योगीराज ने एक दिन प्रसन्न होकर ऊदाजी को कहा कि आप को जैतारण का राज्य दिया। यहीं से चढ़ाई करके जैतारण चले जाओ । ऊदाजी अपने मासाजी के विरूद्ध युद्ध करना नहीं चाहते थे तो उन्होंने कुछ आनाकानी की और बहाना भी बनाया कि मेरे पास युद्ध के लिए पर्याप्त सेना नहीं है। लेकिन योगीराज रिधरावलजी ने कहा कि जैतारण से सिंधलों के राज्य की अवधि समाप्त हो गई है। योगीराज ने महाभारत में अर्जुन को दी गई सीख याद दिलाते हुए कहा कि तुम तो निमित्त मात्र हो, विधि का यही विधान है, तुम को यह कार्य करना ही पड़ेगा। आज्ञानुसार ऊदाजी ने सवारों सहित जैतारण के लिए उसी समय कूच कर दिया।

ऊदाजी को संयोग वश सिंधलों के परिवार में किसी लड़के का विवाह होने के कारण आदिकांश लोग बारात में गये हुए थे। अतः ऊदाजी को जैतारण जीतने में ज्यादा समय नहीं लगा। ऊदाजी ने जैतारण सिंधलो से जीत कर नया राज्य स्थापित किया। राव ऊदाजी वि.सं. १५३९ वैषाख सुद 3 को जैतारण की गद्दी पर बैठे। उनका राजतिलक पुरोहत भोजराज ने किया था इसलिए पुरोहितजी को गांव तालकिया सीख में दिया गया था।

जैतारण से सिंधल मेवाड़ चले गये जहां उदयपुर महाराणा रायमलजी ने उन्हें 12 गांवों की जागीर दी। ऊदाजी ने कुछ दिन बाद पूरी तैयारी करके उदयपुर महाराणा से मदद ले कर जैतारण पर चढ़ाई कर दी । इस युद्ध  में भी सिंधलों को हार का मुँह देखना पड़ा . राव ऊदाजी के पराक्रम की धाक उस समय पूरे मारवाड़ में छाई हुई थी। उन्होंने जालोर जिले के भवराणी ग्राम के पास भी युद्ध कर दुश्मनो  को हराया। एक बार राव ऊदाजी किसी गम्भीर रोग से ग्रसित हो गये थे। इस अवसर का लाभ उठा कर मेड़ता के राव वीरमजी ने जैतारण से कुछ घोड़ियां जो खेत में चर रही थी उनको ले कर चले गये। राव ऊदाजी को यह अपमान सहन नही हुआ। ऊदाजी ने अपने सेवागीरों से कहा कि मुझे पलंग पर लेटे लेटे ही योगीराज रिधरावलजी के पास ले चलो। योगीराज ऊदाजी का राज्य स्थापित होने के बाद निम्बोल से जैतारण आ कर रहने लग गये थे। योगीराज ने राव ऊदाजी को आशीर्वाद दिया । राव ऊदाजी अपने सवारों को साथ लेकर जैतारण से राव वीरमदेवजी मेड़तिया के पीछे अपनी घोड़ियां वापस लाने के लिए रवाना हुए। दूसरी और वीरमदेवजी निष्चिन्त थे कि ऊदाजी तो अपनी चारपाई से उठने में ही असमर्थ है फिर घोड़िया छुड़ाने वाला कौन है। वे निष्चिन्त हो कर मेड़ता के रास्ते में लिलिया गांव के तालाब पर घोड़ियों सहित ठहरे तथा गोठ कर खुषियां मनाने के विचार से भोजन तैयार करवा रहे थे ठीक उसी समय राव ऊदाजी अपनी टुकड़ी लेकर वहां पहुच गये तथा क्रोधित होकर राव विरमदेवजी को ललकारा। राव ऊदाजी को अचानक देखकर वीरमदेव सक पका गये। उन्होनें ऊदाजी से कहा कि आप स्वयं आ गये हैं तो आधी घोड़िया वापस ले जाओ । इस से राव ऊदाजी और अधिक क्रोधित हो गये।  राव ऊदाजी ने विनम्रता पूर्वक कहा कि आप अपनी गलती स्वीकार कर घोड़ियां लौटा दें या फिर युद्ध के लिए तैयार हो जावें। समझौता नहीं हो सका अतः दोनों दलों में घमासान युद्ध हुआ जिसमें वीरमदेवजी की पराजय हुई तथा उन्हें यह कहना पड़ा कि युद्ध बन्द करावें व सभी घोड़ियां ले पधारे। इस पर राव ऊदाजी ने वीरमदेवजी से कहा कि आप अपनी कमर कटारी उतार दो और आगे के लिए प्रतिज्ञा करो कि भविष्य में आप व आपके वंशज कटारी कमर में नहीं बांधेगे। वीरमदेवजी ने स्वीकार किया, तब से ही मेंड़तिया राठौड़ कमर में कटारी नहीं बांधते हैं। राव ऊदाजी समस्त घोड़ियों को लेकर जैतारण आ गये। वि.सं. 1567 में वैषाख सुदी 15 को राव ऊदाजी का जैतारण में स्वर्गवास हुआ।

 राव ऊदाजी के 7 पुत्र हुए। 

1 मालम सिंह राठोड         - ज्येष्ठपुत्र होने से जैतारण में रहे।
2 डूंगर सिंह राठोड           - निमाज।
3 खींवकरण राठोड           - गिरी जागीर में मिली। बाद में जैतारण के स्वामी हो गये।
4 नेत सिंह राठोड             - रायपुर जागीर में मिला
5 णवीर राठोड                 - प्रगड़ा (कुषालपुरा)
6 जैत सिंह राठोड             - कुषालपुरा
7 खेत सिंह राठोड             - ग्राम झूंठा

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