Monday 27 November 2017

कल्ला जी का अदभुद पराक्रम

कल्ला जी बड़े ही वीर योद्धा  थे । वे अनेक विधाओं में निपुण हुए । कल्ला जी राठौड ने तीर ,भाला ,खड्ग ,तलवार ,अस्त्र -शस्त्र आदि शिक्षा ली। वे क्षत्रिय धर्म में भी पारंगत हुए । उनके काल में अकबर द्वारा थोपी गई कुप्रथाओ के पुरजोर विरोधी थे । इसी लिए उन्होंने मारवाड़ छोड़ दिया और मेवाड़ राज्य जाने  का फैसला किया  ।

उनके इस तरह अचानक मारवाड़ छोड़ने की बात सुनकर उनके भाई तेज सिंह,दोस्त रणधीर सिंह और विजय सिंह को चला तो वे तुरंत उनके पीछे – पीछे चल दिए । कल्ला जी अपने मित्रो के साथ मेवाड़ के चित्तौडगढ़ सहर पहुंचे । वहाँ चित्तौड के राव उदय सिंह और काका जयमल जी ने उनका शानदार स्वागत किया । कल्ला राठोड़ की वीरता, शैार्य और पराक्रम को देखकर उदय सिंह अत्यंत प्रस्सन हुए । और उन्हें रनेला का जागीदार घोषित किया  ।

कल्ला जी ने अपने मित्रो के साथ अपनी नयी राजधानी रनेला के लिए प्रस्थान किया । उस समय तेज वर्षा के कारण वागड़ में वहां के राव कृष्णदेव की पुत्री कृष्णकांता के आग्रह पर रात्रि विश्राम किया ।  रनेला में वहां के लोगो ने अपने नए राजा का ढोल-नगाड़ो से स्वागत किया ।

कल्ला जी अपने नए राज्य की जनता का प्रतिदिन दुःख सुनते तथा उनका उचित निवारण करते थे। उन्होंने राज्य में अर्थव्यवस्था ,अनुशासन व न्याय उचित तालमेल बनाया । उस समय रनेला के पास दस्युओं का आतंक था । जिनका ठाकुर गमेती पेमला था । कल्ला जी ने भोराई-गढ़ को दस्युओं के आतंक से मुक्त किया ।

कल्ला जी जब तोरण पर थे तभी उन्हें जयमल का सन्देश मिलता है, की अकबर ने चित्तौडगढ़ पर आक्रमण कर दिया । तुम शीघ्र आ जाओ । वे चित्तौडगढ़ की और निकल गए । और चित्तौडगढ़ जाने से पहले उन्होंने  कृष्णकांता को वचन दिया की वे शीघ्र वापस आएगे । उन्हें देखकर जयमल अत्यंत प्रस्सन हुए । युद्ध प्रारंभ हुआ । तथा वे बड़ी वीरता से दुश्मनो को पछाड़ रहे थे । चित्तौडभूमि पर लाशे बिछ गयी । अकबर की सैना हार रही थी । तभी अकबर ने मौका देखकर जयमल की जांघ पर गोली मार दी । जयमल की हालत देखकर कल्ला जी परेशान हो गए । उन्होंने जयमल को अपने कंधो पर बिठा लिया । और फिर दोनों लड़ने लगे । उनका वह चतुर्भुज रूप देखकर अकबर की सैना घबरा गयी।

अंत में कल्ला जी का सिर कट जाने के बाद  भी वे लड़ते रहे । तथा विजयी हुए । वे अपना वचन निभाने के लिए कृष्णकांता से मिलने गए । उनके मिलान के बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए । कृष्णकांता भी उनके साथ सती हो गई ।

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